साइनस (Sinuses) क्या हैं?
साइनस के उपचार– साइनस एक खाली जगह हैं, शरीर का संरचना में जो उपरी जबड़े के पीछे और नाक के आसपास होता हैं। ये विशेषकर वायुवेग उत्सर्गवाहक मार्गों के जरिए नाक और गले की बदबू का नियंत्रण करते हैं । एलर्जी, धूल और मोल्ड से व्यक्ति को इसके सतह में सूजन हो सकता है जो साइनस संक्रमण का कारण बन सकता है | यह एक नाक का रोग है। जिसे आयुर्वेद प्रतिश्याय के नाम से भी जाना जाता है।
साइनसाइटिस इन्फेक्शन (साइनस) के कारण
साइनसाइटिस का मुख्य कारण: नाक और गले में बैक्टीरियल, वायरल या फंगल संक्रमण होना।
- एलर्जी से : प्रदूषण, धूल, धूम्रपान, फूलों और पौधों से एलर्जी होना।
- बदबू के कारण: जीभ और गले में बैक्टीरियल संक्रमण या नाक में ब्लॉकेज से खराश होना।
- मुख और नाक का इन्फेक्शन: जो आमतौर पर दांतों या मुख से संबंधित होते हैं।
- ठंडे मौसम में : जल्दबाज़ी से घिस जाने वाले ठंडे हवाओं के कारण संक्रमण हो सकता हैं।
लक्षण
चाहे तीव्र या जीर्ण, साइनस संक्रमण के लक्षण अक्सर गंभीर समय के दौरान या सर्दी या चल रहे एलर्जिक राइनाइटिस के लक्षणों के बाद विकसित होते हैं। साइनसाइटिस का सबसे आम लक्षण माथे और गालों में दर्दनाक दबाव है। इसके अन्य लक्षणों में शामिल हैं:
- खांसी
- गाढ़ा पीला-हरा नाक से स्राव
- नाक से टपकना, अक्सर खराब स्वाद के साथ
- दांत दर्द
- नाक बंद
- गंध की भावना खो गई
- सिरदर्द
- थकान
- गले में खरास
- चेहरे की कोमलता
- कान का दबाव
- हल्का बुखार
उपचार
साइनस के उपचार हेतु, घरेलू उपाय, आयुर्वेदिक दवा, बेहतर विलाप मानी जाती हैं, आयुर्वेद तीन दोषों पर काम करता हैं, बात, पित्त और कफ- साइनस आयुर्वेद के अनुसार कफ दोष के अंतर्गत आता हैं | जिसका जड़ से इलाज संभव हैं
साइनस का आयुर्वेदिक उपचार
आयुर्वेदिक उपचार में निम्नलिखित प्रक्रियाएं और दवाओ को शामिल किया जा सकता हैं:
- जलनेति (नश्यम) : जलनेति नाक धोने का एक प्राचीन आयुर्वेदिक उपचार है। इसमें नाक के एक नेती यंत्र का उपयोग किया जाता है जिसे सोडियम बाईकार्बोनेट और गर्म जल से भरा जाता है। इससे नाक के रुके हुए मल, धूल और अन्य कचरे को बाहर निकालने में मदद मिलती है और साइनस की समस्या को कम करने में सहायक होती है।
- तुलसी काढ़ा: तुलसी के पत्तों से बना काढ़ा एक उच्चत्तम आयुर्वेदिक दवा है जिसमें एंटीवायरल, एंटीबैक्टीरियल और एंटी-इनफ्लेमटरी गुण होते हैं। तुलसी काढ़ा रोजाना पीने से साइनस के में आराम मिलता है और नाक और गले की खराश को कम कता है।
- अदरक और लहसुन: अदरक लहसुन, इन्हें ताजे या पीसे हुए रूप में खाने से साइनस की समस्या कम होती हैं
- यस्तिमधु: यस्तिमधु (Licorice) इसे दूध के साथ पकाकर या यस्तिमधु काढ़ा बनाकर सेवन किया जाता है।
- पंचकर्म: गंधुष, नास्य, वमन, विरेचन और रक्तमोक्ष पंचकर्म चिकित्सा साइनस के संक्रमण को ठीक करने में मदद करता है।
आयुर्वेदिक दवाएं
साइनस का आयुर्वेदिक दवाएं–
संख्या | आयुर्वेदिक दवा | उपयोग |
---|---|---|
1 | सुतेका घन वटी | साइनस के लक्षणों को कम करने और नाक से बलगम को दूर करने में मदद करती हैं। |
2 | सितोपलादि चूर्ण | इसे साइनस इन्फेक्शन के उपचार के लिए लेने से लाभ मिलता हैं |
3 | त्रिकटु चूर्ण | त्रिकटु चूर्ण नाक की खराश और जलन को कम करने में मदद करता हैं, |
4 | सिंहासनिया चूर्ण | सिंहासनिया नाक से बलगम को दूर करने में मदद करता हैं। |
5 | त्रिफला चूर्ण | त्रिफला चूर्ण पाचन को सुधारने, बलगम को बाहर निकालने, और साइनस संक्रमण को दूर करता हैं। |
6 | महासुदर्शन चूर्ण | यह दवा तापमान बढ़ने पर होने वाले साइनस के संक्रमण के उपचार के लिए उपयोगी हैं। |
7 | संजीवनी वटी | संजीवनी वटी श्वसन तंत्र की कमजोरी और साइनस संक्रमण के उपचार के लिए उपयोगी हैं। |
8 | महालक्ष्मी विलास रस | इन्फेक्शन के लक्षणों को कम करने में मदद करती हैं और श्वसन तंत्र को सुधारती हैं। |
9 | कुमारी कास्याय | साइनस में कुमारी कास्याय भी बहुत उपयोगी हैं। |
ध्यान दें-आयुर्वेदिक दवाओं का सेवन करने से पहले एक विशेषज्ञ चिकित्सक से सलाह लेना अनिवार्य है। विभिन्न व्यक्तियों के शरीरिक स्वास्थ्य के अनुसार, विशेषज्ञ चिकित्सक आपको उचित और सुरक्षित उपाय बताएंगे।