दिल्ली में पंचकर्म उपचार
पंचकर्म
पंचकर्म आयुर्वेद का एक प्रमुख शुद्धिकरण एवं मद्यहरण उपचार है। पंचकर्म का अर्थ पाँच विभिन्न चिकित्साओं का संमिश्रण है। इस प्रक्रिया का प्रयोग शरीर को बीमारियों एवं कुपोषण द्वारा छोड़े गये विषैले पदार्थों से निर्मल करने के लिये होता है। आयुर्वेद कहता है कि असंतुलित दोष अपशिष्ट पदार्थ उतपन्न करता है जिसे ‘अम’ कहा जाता है।
पंचकर्म-चिकित्सा आयुर्वेदीय चिकित्सा का एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण अंग हैं। पंचकर्म शब्द से ही इसका अर्थ स्पष्ट है कि ये पाँच प्रकार के विशेष कर्म हैं जो शरीर से मलों व दोषों को बाहर निकालते हैं। इस चिकित्सा से पूर्व जिन कर्मों को किया जाता है उन्हें पूर्व कर्म कहा जाता है। ये पांच कर्म निम्नलिखित है :
1- वमन (Emetic therapy)
2- विरेचन (Purgative therapy)
3- नस्य (Inhalation therapy or Errhine)
4- अनुवासन वस्ति (A type of enema)
5- निरूह वस्ति (Another type of enema)
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वमन (Emetic therapy)
इस चिकित्सा में उल्टी (Vomiting) लाने वाली औषधियों का प्रयोग करके आमाशय की शुद्धि की जाती है, इसे ‘वमन’ कर्म कहते हैं। अधिक गर्मी व सर्दी वाले मौसम में यह क्रिया नहीं की जाती है। इस क्रिया का मुख्य उद्देश्य शरीर में जमे हुए कफ को उल्टी के माध्यम से बाहर निकालना है।
किन रोगों में है फायदेमंद
ऐसे मरीज जो कफज और पित्तज रोग से पीड़ित हैं उनके लिए क्रिया बहुत फायदेमंद होती है। निम्नलिखित रोगों और समस्याओं के इलाज में वमन क्रिया उपयोगी है।
- खाँसी
- अस्थमा
- जुकाम
- कफज ज्वर
- जी मिचलाना
- भूख न लगना
- अपच
वमन की विधि
वमन के लिए रोगी को पैरों के बल घुटने मोड़ कर अथवा घुटने तक ऊंची कुर्सी पर शान्ति से बिठाया जाता है। इसके बाद मरीज को काढ़ा पिलाया जाता है जिससे जी मिचलाने लगता है। इसके बाद मुंह में ऊँगली डालकर उल्टी कराई जाती है। ऐसा करने से सबसे पहले कफ फिर औषधि और फिर पित्त निकलता है। इस बात का ध्यान रखें कि पित्त निकलने तक उल्टी होनी चाहिए। अगर उल्टी के बाद मरीज हल्कापन महसूस करे तो वमन क्रिया को सफल माना जाता है।
विरेचन (Purgation therapy)
जब आँतों में स्थित मल पदार्थ को गुदा द्वार से बाहर निकालने के लिए औषधियों का प्रयोग किया जाता है तो इस क्रिया को विरेचन कहते हैं। यह एक महत्त्वपूर्ण संशोधन (Purgation) क्रिया है। इसका प्रयोग सामान्यतः सर्दियों के मौसम में किया जाता है.
किन रोगों में है फायदेमंद होती है विरेचन क्रिया
- अपच से होने वाले रोग
- पेट फूलना
- चर्म रोग (कुष्ठ)
नस्य कर्म अथवा शिरोविरेचन (Inhalation therapy)
सिर, आंख, नाक, कान व् गले के रोगों में जो चिकित्सा नाक द्वारा ली जाती है, उसे नस्य या शिरोविरेचन कहते हैं।
अनुवासन बस्ति (A type of enema)
गुदामार्ग में कोई भी औषधि डालने की प्रक्रिया ‘बस्ति कर्म’ कहलाती है। जिस बस्ति कर्म में केवल घी, तैल या अन्य चिकनाई युक्त द्रव्यों का अधिक मात्रा में प्रयोग किया जाता है उसे ’अनुवासन‘ अथवा ’स्नेहन बस्ति‘ कहा जाता है।
किन लोगों को कराना चाहिए
जिन लोगों के शरीर में रूखापन ज्यादा हो और पाचक अग्नि तीव्र हो साथ ही वे वात दोष से जुड़े रोगों से पीड़ित हो। उन लोगों को अनुवासन बस्ति कराना चाहिए।
निरूह बस्ति (Another type of enema)
जिस बस्ति कर्म में कोष्ठ (आमाशय में जमे मल) की शुद्धि के लिए औषधियों के क्वाथ, दूध और तेल का प्रयोग किया जाता है, उसे निरूह बस्ति कहते हैं। यह बस्ति शरीर में सभी धातुओं और दोषों को संतुलित अवस्था में लाने में मदद करती है।
किन लोगों को कराना चाहिए निरूह बस्ति
- वात से जुड़े रोग
- मलेरिया
- पेट से संबंधित रोग
- पेट फूलना
- मूत्राशय में पथरी
- एसिडिटी
- कमजोर पाचक अग्नि
- मूत्र में रूकावट
- हदिल से जुड़े रोग
- डायबिटीज
- कब्ज़
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