घुटनों के दर्द के लिए पंचकर्म से आयुर्वेद में इलाज
दिल्ली में पंचकर्म उपचार
डॉ मोंगा मेडी क्लिनिक दिल्ली में सबसे अच्छा पंचकर्म केंद्र है। जहां हम पंचकर्म से संबंधित आयुर्वेद उपचार करते हैं।
आयुर्वेद: पंचकर्म चिकित्सा क्या है, इसे कैसे करते हैं-
प्राचीन भारतीय ऋषियों ने मानव स्वास्थ्य को सर्वोपरि रखते हुए, जीवन को स्वस्थ रखने के लिए विशिष्ठ चिकित्सा पद्धति तैयार की जिसे पंचकर्म थेरेपी (Panchakarma Therapy) के नाम से जाना जाता है। चरक संहिता सूत्र 30/26 में कहा गया है- स्वस्थस्य स्वास्थ्य रक्षणं, आतुरस्य विकार प्रशमनं। अर्थात आयुर्वेद शास्त्र का उद्देश्य एक स्वस्थ व्यक्ति को स्वस्थ रखना और किसी व्यक्ति में होने वाली बीमारियों (मन, शरीर या दोनों) को ठीक करना है।
पंचकर्म पद्धति (Panchakarma Therapy) आयुर्वेद चिकित्सा की सबसे पुरानी पद्धतियों में से एक है। दिल्ली में पंचकर्म उपचार के लिए डॉ. मोंगा मेडी क्लिनिक सबसे अच्छा क्लिनिक है। पंचकर्म अर्थात पांच प्रकार की ऐसी चिकित्सा जिसमें शरीर के दोष (विषाक्त पदार्थों) बाहर निकाले जाते है। पंचकर्म एक डिटॉक्स प्रक्रिया है
अधिकांश लोगों के मन में आयुर्वेद (Ayurveda) को लेकर यह सवाल उठता है कि यह बहुत पुराना विज्ञान है और इसकी दवाएं काफी कड़वी होती है। तथा इलका इलाज लम्बी अवधि तक चलता है। इसके अलावा आयर्वेद के इलाज से धीरे-धीरे आराम लगता है। जबकि ये धारणा बिल्कुल गलत है। यह चिकित्सा विज्ञान बहुत पुराना है परंतु इसकी चिकित्सा बहुत ही कारगर है।
पंचकर्म चिकित्सा (Panchakarma Therapy) के द्वारा शरीर को डिटॉक्सीफाई (शुद्धिकरण) करके प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करने का सबसे अच्छा माध्यम है। विशेषज्ञों के अनुसार,डॉ मोंग मेडी क्लिनिक में पंचकर्म के द्वारा शरीर के साथ-साथ मन का भी उपचार किया जाता है। हर इंसान को एक वर्ष में एक या दो बार पंचकर्म जरूर करवाना चाहिए। पंचकर्म करवाने से शरीर में मौजूद विषाक्त पदार्थ बाहर निकल जाते हैं जिससे बीमारी होने की संभावनाएं बहुत ही कम हो जाती है। यदि कोई व्यक्ति बीमार है तो वह बहुत ही जल्दी स्वस्थ हो जाता है।
पंचकर्म को तीन भागों में बांटा गया है:
- पूर्वकर्म
- प्रधानकर्म
- पश्चात कर्म
पंचकर्मा पद्धति के पांच प्रमुख प्रकार
- वमन
- विरेचन
- नस्यम्
- बस्ती
- रक्तमोक्षण
वमन
इस प्रक्रिया में शरीर में जमे विशैल पदार्थों को आयुर्वेदिक औषधियों के माध्यम से बाहर निकाला जाता है। यह विशैले पदार्थ उल्टी के माध्यम से शरीर के बाहर आ जाते है। वमन पद्धति उन मरीजों के लिए सर्वाधिक लाभकारी सिद्ध हुई है जो कि मोटापा, एलर्जी, फीवर, विटिलिगो, सोरायसिस, एसिडिटी, क्रोनिक अपच, नाक की बीमारी, सूजन, मनोवैज्ञानिक विकार, त्वचा विकार तथा अस्थमा जैसी बीमारी से परेशान होते है। आयुर्वेद के अनुसार वमन पद्धति के उपचार से कफ दोष का निवारण किया जाता है।
विरेचन
इस पद्धति से पेट में जमा विषाक्त पदार्थों को शरीर से बहार निकाला जाता है। इस प्रक्रिया में मुख्यतः आयुर्वेदिक दवाएं एवं कुछ तरल द्रव्य काढ़ो को प्रयोग में लाया जाता है। यह चिकित्सा उन लोगों के लिए वरदान साबित हुई है जो लोग पीलिया, जीर्ण ज्वर, मधुमेह, दमा, दाद जैसे त्वचा विकार, पाचन विकार, कब्ज, हाइपरएसिडिटी, विटिलिगो, सोरायसिस, सिरदर्द, एलिफेंटियासिस एवं स्त्री रोग संबंधी विकार जैसी बीमारी से ग्रसित होते है। शरीर में यदि पित्त की अधिकता हो जाती है तो उसे विरेचन पद्धति के द्वारा ही संतुलित किया जाता है।
नस्यम्
नस्यम कर्म चिकित्सा में औषधियों का प्रवेश नाक के द्वारा कराया जाता है। इस पद्धति से मरीज के सिर में जमा विषाक्त पदार्थ नस्यम् चिकित्सा द्वारा बाहर निकले जाते हैं। इसके बाद मरीज के सिर एवं कंधों पर हल्की-हल्की मालिश भी की जाती है। जो लोग माइग्रेन, सिर में दर्द, PCOD/PCOS, हार्मोनल असंतुलन, ट्राइजेमिनल न्यूराल्जिया, स्मृति और आंखों की दृष्टि में सुधार, अनिद्रा, अतिरिक्त बलगम, साइनस/साइनसिसिस की उत्तेजना, चेहरे में हाइपर पिग्मेंटेशन, बालों का प्री-मेच्योर ग्रेइंग, सिरदर्द / माइग्रेन की स्पष्टता, गंध और स्वाद की हानि, गर्दन संबंधी परेशानी, आवर्तक राइनाइटिस, नाक की बीमारी, न्यूरोलॉजिकल डिसफंक्शन, पैरापेलिया, गर्दन संबंधी स्पोंडिलाइटिस जैसी समस्याओं का सामना कर रहें है उनके लिए यह प्राचीन चिकित्सा रामबाण का काम करती है। कफ दोष का निवारण भी नस्यम् पद्धति से किया जाता है।
बस्ती कर्म
बस्ती पद्धति में कुछ विशेष आयुर्वेदिक तरल द्रव्यों (काढ़ा) का प्रयोग किया जाता है। इन तरल द्रव्यों में तेल,धी,दूध एवं अन्य आयुर्वेदिक तरल द्रव्य सामिल है। इस पद्धति के माध्यम से पुरानी से पुरानी बीमारी को ठीक करने में मदद मिलती है। यह चिकित्सा ऐसे लोगों लिए बहुत ही कारगर है जिनको वात दोष की अधिकता है। वात दोष से छुटकारा पाने में यह पद्धति “संजीवनी” का काम करती है। जो लोग वात-गठिया, परपलेजिया, कब्ज, पाचन विकार, पीठ दर्द और कटिस्नायुशूल, हेपेटोमेगाली, मोटापा, बवासीर, यौन विकलांगता, बांझपन, बवासीर, कब्ज एवं मोटापे जैसी समस्या का शिकार है तो उन्हें यह चिकित्सा पद्धति बहुत ही अच्छा लाभ पहुंचाती है।
रक्तमोक्षण
इस चिकित्सा पद्धति के अंतर्गत दूषित रक्त को ठीक किया जाता है। यह उन बीमारियों में बहुत ही लाभकारी होती है जो खून में खराबी के कारण उत्पन्न होती है। इस प्रक्रिया में किसी एक विशेष आयुर्वेदिक तकनीकी के द्वारा दूषित रक्त को शरीर के बाहर निकाल दिया जाता है। जो लोग त्वचा संबंधी बीमारी जैसे कील-मुंहासे,आमवाती गठिया, त्वचा रोग, महिलाओं में हॉट फ्लश की तरह पित्त दोष, हाइपरसिटी, उच्च रक्तचाप, वैरिकाज नसों आदि, चर्म रोग, त्वचा से संबंधित बीमारी, एक्जिमा इत्यादि है तो उन्हें आयुर्वेद की रक्तमोक्षण पद्धति बहुत ही कारगार साबित होती है।
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